Saturday, November 21, 2015

3. अहंकार.

संसार में हर क्षेत्र और हर कार्य में सफल होना तो शायद ही संभव है। परंतु कई बार ऐसा होता है की मैं कोई एक क्षेत्र में पूर्ण रूप से सफल होने की कोशिश में लगा रहता हूँ और कुछ हद तक नाम कमा लेता हूँ।

उसी क्षेत्र में मुझसे ज्यादा सफल कई लोग हो अथवा मुझसे तेज़ होने की वजह से आगे निकल रहे हो यह संभव है। अक्सर लोग पूछते है की आप तो इस क्षेत्र में माहिर है फिर आपको शिखर सर करने की इच्छा नहीं होती?

मैं जवाब देता हूँ की करने को तो मैं बहोत कुछ कर सकता हूँ / सकता था परंतु मैं अपने लोभ को बढ़ाना नहीं चाहता और शिखर पर पहुचना कौनसी बड़ी बात है पर मुझमें ऐसा कोई अहंकार नहीं।

सच बात तो यह है की मुझमें लोभ और अहंकार कूट कूट कर भरा पड़ा है लेकिन मेरे निजी कारणो से यदि मैं सफलता की ऊंचाइयों पर नहीं पहुचता तो मैं लोभ और अहंकार की न्यूनता का दिखावा करता हूँ और वाकई में साबित करता हूँ की मैं सब से बड़ा अहंकारी हूँ जब मैं यह कहता हूँ की "करने को तो मैं कर सकता हूँ"।

Saturday, November 7, 2015

2. two-forty-five.

I woke up in the night at two-forty-five,
Phir Subah tak mujhe neend nahi aayi...

Aadhe adhure sapne saamne aa gaye ab,
Aur sawaal aaya, ye poore hoge kab?
Sapne aur Sawaal me aadhi umar bitaayi,
Teen baje Josh aaya, Kuch karna hai mere bhai...

I woke up in the night at two-forty-five,
I woke up in the night at two-forty-five...

Khyaalo ka chakkar ghumne laga jab,
Tab socha is gaane me, karlu ikattha sab.
Likhtey likhtey ban gaya shayar, dhun gungunaayi,
Sapne poore saare, hote diye dikhaayi...
I woke up in the night at two-forty-five,
I woke up in the night at two-forty-five...

I woke up in the night at two-forty-five,
Phir Subah tak, Ye Mehfil jamaayi...

Friday, November 6, 2015

1. Praise.

जब मेरी तारीफ़ होती है तब अच्छा महसूस होता है। जाहिर है, जैसा मैं महसूस करता हूँ वैसा सभी महसूस करते होंगे जब उनकी तारीफ़ होती हो।

मैं अक्सर यह चाहता हूँ की मेरी तारीफ़ हो परंतु मैं खुद कितनो की तारीफ़ करता हूँ? और करता भी हूँ तो अधिक मात्रा में क्या मैं उन लोगो की तारीफ़ करता हूँ जो मेरे सब से करीब है या उनकी जिन्हें मैं जानता हूँ परंतु वे मुझे नहीं पहचानते, जैसे की मेरे प्रिय कलाकार, खिलाडी, इत्यादि। मैं ऐसा नहीं कह रहा की उनकी तारीफ़ नहीं करनी चाहिए।

बहरहाल, अपने करीबी घरवाले, दोस्त, रिश्तेदारों की तारीफ़ करने में 3 कारण रुकावट बन सकते है।

1. जो उसने किया वह तो और कोई होता या मैं उसकी जगह होता तो भी वही करता, तो फिर इतनी तारीफ़ क्यों करू?

2. जब उसकी मैंने सहायता की थी, तब उसने कहाँ मेरी इतनी तारीफ़ की थी? तो अब मुझे भी मर्यादा में रहकर ही तारीफ़ करनी चाहिए।

3. अरे। मैं तो भूल ही गया तारीफ़ करना। खैर कोई बात नहीं, अगली बार याद रखूँगा।

अरे भाई, अगर मैं कलाकार का बार बार उसी प्रकार का प्रदर्शन देखकर जोर शोर से तारीफ़ कर सकता हूँ तो मेरे अपनों की और जिस व्यवस्था के बीछ मैं निराकुल रह रहा हूँ उसकी क्यों नहीं जो बार बार लगातार यह ख्याल रखते है की मेरी ज़िन्दगी में किसी भी प्रकार की रुकावट न आये और मैं आनंद से रह सकु।

ऐसे अनगिनत उदहारण मैं सोच सकता हूँ। शुरू करता हूँ मेरे घरवालों से जो रोज़ मेरे लिए बढ़िया भोजन बनाते है। 10 भोजन में से 1 भोजन में ज़रा सा नमक कम पड़ जाने में मैं टोकना नहीं चुकता तो 9 बार जब स्वादिष्ट भोजन बना तो मैं उनकी तारीफ़ करने से क्यों मुकर जाऊ?

इस तरह दोस्त, रिश्तेदार, कर्मचारी, मेरी सेवा में सदा तत्पर और मेरी हर मांग पूरी करने वाले (दूध वाले से लेकर सफाई वाले तक), सामाजिक व्यवस्था और शहर, राज्य, देश चलाने वालो की भी मैं अब से तारीफ़ करता हूँ और करूँगा।