आम ज़िन्दगी सारी है जहां
"रोटी कपडा और मकान"
इस "क्लर्क" "देशवासी" (प्रेमी) ने
बनायीं एक अनोखी "पहचान"
"शोर" भरे इस फिल्म जग में
कुछ सीधे, कुछ "बे-ईमान"
"क्रांति" को "अमानत" बनाकर
इसने दिया एक अलग "बलिदान"
"पूरब और पश्चिम" दोनों दिशा में
बन गया "यादगार" और महान
"उपकार" इस "आदमी" का ऐसा
देश में कभी ना होगा "गुमनाम"
"हिमालय की गोद (में)", "पूनम की रात"
और "सावन की घटा" भी करेगी गुणगान
"संतोष" तो उसे खुदको भी ज़रूर होगा
"सन्यासी" और "शहीद" जैसा, बना आम इंसान