एक एक क़दम बढ़ रहा है,
बनाने इस जीवन को सफल,
ग़म और ख़ुशी का आधार है,
समस्या और उसका हल।
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ज़्यादा से ज़्यादा सोचूँ तो,
बीस साल शेष रह सकते केवल,
कम से कम तो ऐसा है,
शायद न देखूँ अगला पल।
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आज सब छोड़ दिया तो,
कैसे जीऊँगा मैं कल?
दुनिया आगे निकल जाएगी,
मैं रह जाऊँगा निष्फल।
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लक्ष्य पर चलने के लिए,
त्याग करने का नहीं है बल,
प्राप्ति इतनी आसान कहाँ,
कई छोड़ देते हैं अन्न जल।
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लेकिन सब छोड़ने से क्या,
मिल जाता है मोक्ष का फल?
अनंत बार छोड़ा है फिर भी,
समस्या न गई टल।
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इसलिए घर रहूँ या दफ़्तर,
या फिर चल दूँ जंगल,
सब है एक समान अगर,
‘आत्मलक्ष’ करूँ ईमानदार और अटल।
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