एक मित्र की शादी में जाना हुआ।
मुख्य द्वार की सजावट देख कर मैं दंग रह गया। इतना आकर्षक और खूबसूरत नज़ारा पहले कभी नहीं देखा था।
कुछ देर तक जब मेरे कदम आगे नहीं बढे तब किसीने पुकारा और कहाँ, चलो भाई अब अंदर भी चलो।
मैंने कहा, नज़र नहीं हट रही इस आलिशान नज़ारे से।
तब फिर से आवाज़ आयी की दोस्त, अंदर की खुबसूरती के आगे यह कुछ भी नहीं है।
मैंने कहाँ - हो नहीं सकता, भला इससे ज्यादा हसीं और क्या हो सकता है!?
अंदर चलोगे तब पता चलेगा ना - फिर से कोई बोला।
मैं जिद्द पकड़ बैठा था, लेकिन फिर लोगों के कहने से अंदर गया तो हक्का बक्का रह गया। अंदर की खूबसूरती तो इतनी बेनमुन थी की बाहर का नज़ारा मैं कब भूल गया यह ध्यान में ही नहीं आया।
कई बार मुझे कहा जाता है कि प्यार, संतोष, सेवा, ख़ुशी, शान्ति, इत्यादि की खूबसूरती अनुभव करने योग्य है परंतु मुझे पैसे और प्रतिष्ठा की बाहरी खूबसूरती से फुर्सत कहां।
मुख्य द्वार की सजावट देख कर मैं दंग रह गया। इतना आकर्षक और खूबसूरत नज़ारा पहले कभी नहीं देखा था।
कुछ देर तक जब मेरे कदम आगे नहीं बढे तब किसीने पुकारा और कहाँ, चलो भाई अब अंदर भी चलो।
मैंने कहा, नज़र नहीं हट रही इस आलिशान नज़ारे से।
तब फिर से आवाज़ आयी की दोस्त, अंदर की खुबसूरती के आगे यह कुछ भी नहीं है।
मैंने कहाँ - हो नहीं सकता, भला इससे ज्यादा हसीं और क्या हो सकता है!?
अंदर चलोगे तब पता चलेगा ना - फिर से कोई बोला।
मैं जिद्द पकड़ बैठा था, लेकिन फिर लोगों के कहने से अंदर गया तो हक्का बक्का रह गया। अंदर की खूबसूरती तो इतनी बेनमुन थी की बाहर का नज़ारा मैं कब भूल गया यह ध्यान में ही नहीं आया।
कई बार मुझे कहा जाता है कि प्यार, संतोष, सेवा, ख़ुशी, शान्ति, इत्यादि की खूबसूरती अनुभव करने योग्य है परंतु मुझे पैसे और प्रतिष्ठा की बाहरी खूबसूरती से फुर्सत कहां।
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