Tuesday, January 2, 2018

3. धूल खाती किताब.

जब भी देश ने आगे बढ़ने के देखे ख्वाब,
चंद लोगो ने खोली, पुरानी धुल खाती किताब।

सवाल था उनके मन में तो माँगना था जवाब,
शहर को तोड कर, लोगो को मार कर, क्या मिलेगा जनाब?

अँधेरा क्यों करना, जहाँ अभी हो रहा है आफताब,
उनका स्वार्थ और ज़रा से पैसे, बना रहे है तुम्हे वहाब!

बहेगा तुम्हारा मेरा खून, वे तो हसेंगे पहने हिजाब,
क्या तुम खोना चाहते हो जान, पाने कुछ बूँद जहरीली शराब?

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