Saturday, October 27, 2018

2. चंद सिकके.

चंद सिक्कों की खनक के पीछे,
रिश्तो का सुर कहीं छूट गया..

कुछ बेजान सी चीजें इकठा करते,
मैं मेरे से ही पूरी तरह लूट गया...

महल बनाने की तमन्ना को सराहे,
ना जाने कब घर तूट गया...

औरों को मनाने की कोशिश में था,
वहीं अपना कोई मुझसे रुठ गया...

हांसिल थी जो खुशी, वह अनुभव करने की जगह,
बाहर सुख की तलाश में जुट गया...

अंजाम की फिक्र किसे थी जनाब,
जब आग़ाज़ से ही ऊपर उठ गया।।

Wednesday, October 17, 2018

1. Sir.

જે માર્ગે તમે ચાલ્યા,
  નથી વળી ને જોયું કદી પાછળ...
અટપટા લાગતા હતા એ રસ્તા,
  તમે કર્યો પુરુષાર્થ, બને એ સરળ...
એ નિર્ગ્રંથના પંથે ચાલીને,
  આ જન્મમાં જો વધું હું આગળ...
તો ફક્ત આપનો જન્મદિવસ કે જન્મ નહીં,
  મહાદુર્લભ આ મનુષ્ય ભવ પણ થાય સફળ.

खुद भी पागल हो गए, तुम को भी पागल कर दिया....