Sunday, July 5, 2020

2. दो गज का फासला...

दो गज का फासला,
दिलों को करीब ला सके, तो सही है...

चेहरे पे भले मास्क है,
लेकिन उसके पीछे जो इंसान है, वही है...

घर की दाल में भरा प्यार,
स्वाद उसका शायद बिरयानी जैसा, नहीं है...

तेज रफ्तार थी ज़िन्दगी की,
अब उसकी गति कभी धीमी, कहीं थमी है...

ऐसा लगे मानो चारो ओर अंधेरा,
परंतु समय की सुई उजाले की दिशा में, बढ़ रही है...

केवल हौसला दे रहा हूं खुद को,
बाकी ये सब बातें इस कायनात में, कहां अनकही है...

दो गज का फासला,
दिलों को करीब ला सके, तो सही है...

-----------------------------------------------
Reply from a friend:

बातें तो कहां तेरी और मेरी अनसुनी है,
जानते तो यह सभी है।

वक़्त का पहिया कहां किसी के लिए कभी रुका है?
चाहे यहां आंधी या छाए अंधेरा, उजाला और रोशनी वहीं के वहीं है!

तु समजदार है, और सब तो जानता है;
बस फर्क ये है कि,तु बोलता है और सब चुप रहते हैं।

दूरी और फासला इस महामारी में जरूरी हो गए है,
पर जो बिना कहे,बोले सुन के, समज ले, सम्बल जाए उसे तो दिल की डोरी बंधी है!!

दो गज के फासले है,जरूरी है
पर कुछ ना केहके भी समाज जाए उस दिल से दिल की डोरी जुड़ी है!!

( ए दोस्त।।। खुब लिखकर जो सच है वो बयान किया वो सही है! और तेरी अदाओं में भी वो सादगी और... नमी है!)

No comments: