कैसी कश्मकश है मेरे दोस्त,
कितना अजीब है यह जीवन,
जो पैदा हुआ है उसे ही नहीं मिलता,
करने उसके खुद के "नाम" का चयन!!
असली मज़ा तो अब है...
उम्र भर दौड़ता/ी रहेगा/ी वह खुद,
बचाने, कमाने, वही "नाम" रूप धन,
जिस "नाम" को तय करने सारे परिवार ने,
रचा था उसके जन्म समय महा-प्रकरण!!
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