भीड़ में हर कोई चाहता है, सब उसे देखे,
क्या होगा, अगर यह भीड़ मुझ पर भी दे एक नज़र
और क्या होगा, अगर कोई ना डाले आंखें मुझ पर
शोर में हर किसीको लगता है, सब उसको सुने,
क्या होगा, इस शोर में मेरी भी आवाज़ जोड़कर
और क्या होगा, जो मैं रहु चुप, एक किनारे बैठकर
दुनिया चल पड़ी है कुछ न कुछ साबित करने,
क्या होगा, अगर बता दू मैं भी अपने हुनर
और क्या होगा, चला जाऊं, बगैर अस्तित्व का यकीन दिलाकर
अधिकतर सोच सिमित है, बिछ जीने और मरने,
क्या होगा, जो मैं भी सोचु केवल, इस आयुष्य का सफर
और क्या होगा, अगर मेरे विचार जाए ये सीमा उलाँघकर
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