ना जितने की ख्वाइश,
ना हारने की रंजिश,
बहती नदी सा जीवन,
धुप सर्दी या फिर बारिश.
ना किसी से कोई गुज़ारिश,
ना कही करनी कुछ आज़माइश,
गिला शिकवे अब क्यों करने है,
जब वह कर रहा है परवरिश.
शरीर ने छू लिए चालीस,
फिर भी चल रही है मालिश,
बढ़ने के कोई आसार नहीं,
अब भी हो रही हरकतें बालिश.
ना हारने की रंजिश,
बहती नदी सा जीवन,
धुप सर्दी या फिर बारिश.
ना किसी से कोई गुज़ारिश,
ना कही करनी कुछ आज़माइश,
गिला शिकवे अब क्यों करने है,
जब वह कर रहा है परवरिश.
शरीर ने छू लिए चालीस,
फिर भी चल रही है मालिश,
बढ़ने के कोई आसार नहीं,
अब भी हो रही हरकतें बालिश.
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