फिर एक बार आये पर्युषण,
जिनवाणी का किया श्रवण,
तप करने की भावना रखी,
कुछ किया; बाकी अनुमोदन !
क्या तप किया है आचरण ?
पुछा, और पुछा गया प्रशन (प्रश्न),
उपवास, एकासना शाता एक दूजे की,
बाकी ११ तप पर कितना वज़न ?
सत्संग सुने, घंटो स्थिर बन,
पर अनुप्रेक्षा के कितने क्षण?
आलोचना की गलतियों की,
ना होंगी दोबारा, दिया वचन ?
अंतिम दिन का जब आगमन,
करना था बड़ा प्रतिक्रमण,
सालभर के कर्मो का प्रायश्चित,
क्षमा मांगी, और की अर्पण !
आज से क्या होगा परिवर्तन ?
फिर वही रफ़्तार वही जीवन ?
८ दिन विशुद्धि के भाव करके,
मैला होगा दोबारा आत्मन ?
पर्युषण का हुआ समापन,
यह मान ले, तन, मन, वचन,
तो मुझे कोई आशा नहीं,
आने वाले तीन सौ सत्तावन !
सूर्योदय मान कर चले मन,
उज्जवल हो उम्मीद की किरण,
इस मौके की कीमत करू तो,
हर दिन है महापर्व पर्युषण !!!
सस्ता समझके फ़ेंक दू तो,
क्या आये, क्या गए पर्युषण !!!
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