रात से सुबह,
सुबह से फिर शाम...
क्या यह ज़िन्दगी,
यूहीं होगी तमाम ?
सुख एवं दुःख का,
आग़ाज़ और अंजाम...
इससे ऊपर उठकर,
है कोई मकाम ?
किसीके शब्द ज़हर,
कोई दिलाता आराम...
क्या मेरे भीतर है,
आनंद का कोई धाम ?
लगभग सारी उम्र,
सावधानी सरे-आम...
कहाँ छुपा है,
सुकून और विश्राम
बोझ लिए चलता हूँ,
इतना सर पर काम...
किसको क्या साबित करना
पद, पैसा और नाम ?
भाग दौड़ चलती रहेगी,
बैठता हूँ लेकर जाम...
क्या पता कहीं यही हो
जीवन की आखरी शाम !!!
Jaam can be an individual thing... For some it can be a good read, for some, kuch aur...
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