Thursday, September 12, 2024

5. एक शाम, एक जाम.

रात से सुबह,

सुबह से फिर शाम...

क्या यह ज़िन्दगी,

यूहीं होगी तमाम ?


सुख एवं दुःख का,

आग़ाज़ और अंजाम...

इससे ऊपर उठकर,

है कोई मकाम ?


किसीके शब्द ज़हर,

कोई दिलाता आराम...

क्या मेरे भीतर है, 

आनंद का कोई धाम ?


लगभग सारी उम्र,

सावधानी सरे-आम...

कहाँ छुपा है,

सुकून और विश्राम 


बोझ लिए चलता हूँ, 

इतना सर पर काम... 

किसको क्या साबित करना

पद, पैसा और नाम ?


भाग दौड़ चलती रहेगी,

बैठता हूँ लेकर जाम...

क्या पता कहीं यही हो

जीवन की आखरी शाम !!!

Jaam can be an individual thing... For some it can be a good read, for some, kuch aur...

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