Wednesday, August 20, 2025

6. सफर दुष्कर.

 नित्य निगोद में बसा था अनादि से घर 

अचानक एक रोज़ आना हुआ बाहर 

लड़ते भटकते आगे बढ़ा सफर 

कभी पेड़, पानी, आग, हवा, पत्थर


सदियों तक चेतन कैद स्थावर 

थोड़ी हलचल हुई त्रस बनने पर 

२-३-४ इन्द्रियों वाली मुश्किल डगर 

हर तरफ से बस खाई मार, ठोकर 


करोडो विकल जन्म बह गए बेखबर

मिली ५ इन्द्रियाँ, ना मिला मन मगर

महा संघर्ष बाद, हुआ मन सभर 

लेकिन तब हुआ शुरू नर्क समर


थकते, मरते काटी, वहाँ लंबी उमर  

फिर जैसे तैसे करके बना जानवर 

कभी गुलामी, कही शिकारी का डर

सहे अपार दुःख, बेजुबान बनकर 


मानो अब आयी ख़ुशी की लहर

पहुंच गए साहब, देवों के नगर

ऐयाशियों में मशगूल, इस कदर 

पीते रहे, मोह का मीठा ज़हर


आगमन, मानव देह के अंदर             

साथ पाया "विवेक" का जेवर 

अब लक्ष प्राप्ति न हुई अगर

नहीं मिलेगा दोबारा, मौका दुष्कर

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