Wednesday, August 20, 2025

7. जीत - हार.

 मोह की जीत इस बार नहीं होगी

अनमोल मनुष्य भव की हार नहीं होगी  

 

संसार के चक्कर में उलझ जाता हूँ

स्वाध्याय सुनकर ज़रा सुलझ पाता हूँ

नहीं है खबर, शेष है कितनी उमर

असमंजस में, दिन, साल रहे है गुज़र    

बस, अब ऐसी दुविधा स्वीकार नहीं होगी   

अनमोल मनुष्य भव की हार नहीं होगी  


भले भक्ति, ध्यान, सेवा मुझे पसंद है 

लेकिन सच यह है, पुरुषार्थ बहुत मंद है 

बाहर की दुनिया में डूब, हो कर मशगूल 

अपने अस्तित्व को सरासर जाता हूँ भूल 

इस देह की कीमत, अब इंकार नहीं होगी 

अनमोल मनुष्य भव की हार नहीं होगी  


वीर ने दिखलाया, एक बेजोड़ पथ है

चुनाव मुझे करना है, कहाँ ले जाना रथ है 

हुआ अनंत काल, बदला नहीं है हाल

क्या इस बारी, "विवेक" का होगा (सही) इस्तेमाल  

सत्पुरुषों की आज्ञा बेकार नहीं होगी 

अनमोल मनुष्य भव की हार नहीं होगी  


मोह की जीत इस बार नहीं होगी

अनमोल मनुष्य भव की हार नहीं होगी

No comments: