चलते चलते रास्ते में एक दोस्त मिल गया। हम साथ चलने लगे। रास्ते में एक इंसान सड़क पर बैठा सब से कुछ मांग रहा था। मेरे दोस्त ने उसे कुछ दिया।
मैंने कहाँ, मैं हर सुबह इसी रास्ते से जाता हूँ, शायद तू भी यहीं से गुजरता होगा और यह इंसान भी इसी जगह रोज़ मांगता है। क्या तू रोज़ इसे कुछ देता है?
दोस्त ने कहाँ - हाँ।
मैंने पुछा - क्यों? क्या तुझे पता है की वह कौन है, क्यों मांग रहा है, कितने लोग उसे देते होंगे और वह कुछ काम क्यों नही करता?
मेरे दोस्त ने सिर्फ इतना कहाँ - मुझे केवल इतना पता है की मैं जब भी यहाँ से गुज़रता हूँ उसकी आँखों में मुझसे कुछ उम्मीद दिखती है। अगर मैं वहां से कुछ दिए बगैर गुज़र जाऊ तो उस उम्मीद की मौत हो जायेगी। दूसरी बात - मैं बहुत स्वार्थी हूँ, मैं जब उसकी उम्मीद को पूरी करने की एक कोशिश करता हूँ तब उसकी ओर से मुझे दुआ मिलती है।
इसी दुआ की लालच में मैं हर दिन जहाँ से गुज़रता हूँ उम्मीद और दुआ का अजीब व्यापार करता हूँ।
मैंने कहाँ, मैं हर सुबह इसी रास्ते से जाता हूँ, शायद तू भी यहीं से गुजरता होगा और यह इंसान भी इसी जगह रोज़ मांगता है। क्या तू रोज़ इसे कुछ देता है?
दोस्त ने कहाँ - हाँ।
मैंने पुछा - क्यों? क्या तुझे पता है की वह कौन है, क्यों मांग रहा है, कितने लोग उसे देते होंगे और वह कुछ काम क्यों नही करता?
मेरे दोस्त ने सिर्फ इतना कहाँ - मुझे केवल इतना पता है की मैं जब भी यहाँ से गुज़रता हूँ उसकी आँखों में मुझसे कुछ उम्मीद दिखती है। अगर मैं वहां से कुछ दिए बगैर गुज़र जाऊ तो उस उम्मीद की मौत हो जायेगी। दूसरी बात - मैं बहुत स्वार्थी हूँ, मैं जब उसकी उम्मीद को पूरी करने की एक कोशिश करता हूँ तब उसकी ओर से मुझे दुआ मिलती है।
इसी दुआ की लालच में मैं हर दिन जहाँ से गुज़रता हूँ उम्मीद और दुआ का अजीब व्यापार करता हूँ।
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