Monday, February 15, 2016

5. अनुसंधान.

एक दोस्त के साथ टहल रहा था तब रास्ते में एक कुत्ता आया। मेरे दोस्त ने एक मंत्र गुनगुनाया। मैं कुछ बोला नहीं। हम आगे बढे। फिर से वैसा ही किस्सा हुआ।

कई बार ये हुआ और अनेक प्राणियो के साथ हुआ तब मुझसे रहा नहीं गया और मैंने सहज पूछ लिया की इसका क्या प्रयोजन है।

उसने एक लंबी सांस ली और मुझसे कहा - तुम्हे शायद मेरी बात पर हँसी आएगी परंतु मैं यह मानता हूँ की हमे जो यह मनुष्य पर्याय मिली है वह अत्यंत कठिन पुरुषार्थ से मिली है, असंख्य बार हमने ईश्वर की अर्चना और प्रभु की पूजा की है और अपने कषायों को सिमित किया है तब जाकर यह मनुष्य भव की प्राप्ति हुई है।

ठीक उसी तरह इस जगत में जितने भी जीव है, उन सबने भी कठिन पुरुषार्थ किया होगा, प्रभु स्मरण किया होगा, कषायों की मर्यादा की होगी, किन्तु कुछ ज़रा सी या अधिक कमी रह गयी की वे मनुष्य नहीं बन पाये।

इन जीवो को यदि मैं ईश्वर की याद दिलाने के लिए कुछ सुनाऊ तो संभव है की उन्हें कुछ अनुसंधान मिल जाए और वे आगे जाके अपना कल्याण करें।

मेरे पास शब्द नहीं थे इसीलिए मेरे मुख से केवल 'वाह' निकला।

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