Monday, September 24, 2018

7. शून्य की कश्ती में.

एक अनजानी सी तलाश में, मैं बरसो से लगातार था,
शून्य की कश्ती में, एक अकेला मैं सवार था,
थक गया तड़प कर, मरने से सपने सजाये,
लेकिन अंदर की आवाज़ को, आपका इंतेज़ार था.

आपके अस्तित्व की झलक ने, मेरी दुनिया ऐसी बदली,
तंदुरुस्त हो गया दिल, जो सालों से बीमार था.

आज आपकी मौजूदगी से, ज़िंदा है यह जिस्म,
इसे लाश बनने ना देने वाला, सिर्फ आपका प्यार था.

आपके स्पर्श ने मुझमें नई जान डाली,
वरना यह तन, मुर्दे की माफ़िक बेकार था.

इस दीवाने की गिनती हुई, आपकी मौजूदगी से,
आपके आने से पहले यह शून्य था, शून्याकार था.

गर आप ना आते, तो मिट चुका होता था इस जहां से,
मौत से इस रूह का, ऐसा मजबूत करार था.

2 comments:

Shaili said...

OMG! This is also Dilip! The more I know you, the more I wonder about you! Too touchy! English, Gujarati & now Hindi! You write so well. Got goosebumps! Eager to read more.

d i l i p said...

ThanQ :-)