Thursday, December 31, 2015

2. Resolution.

Resolution

At the beginning of each year, I like to talk and flaunt about resolution(s). The fire is at its peak and it results in umpteen commitments right from work-outs to professional ambitions to self-development to spiritual growth to the purpose of being and  ultimate goal of life.

Life is envisioned at a larger canvas at the start of the year. My mind prepares me to an extent of visualization of the results dancing in front of my eyes.

All plans are made and execution date starts tomorrow.

Does tomorrow come?

Do I really need to built-up same / similar resolution(s) each year?

Can I take a modular approach and start an execution now? Should I be looking at a small though significant purposes and bundle them along my journey of 2016.

At the end of 2016, the bundle will rollover in 2017 and a making of larger bundle will be inevitable.

I want to work at the grassroots and using a bottom-up algorithm build brick by brick.

On this note, I welcome myself to 2016 with a resolution, oops I mean "revolution" happening.

Wishing us all a happy and a revolutionary 2016

Sunday, December 13, 2015

1. Intezaar.

Waqt ne bhi ajeeb imtehaan liya mere pyaar ka...
Intezaar kiya bahut, par phir hua deedar mere yaar ka,
Khushi se main jhoom ne hi  waala tha,
Tab phir samay hua waqt ke agle waar ka..

Ghadi ne kahaan thoda, karle thoda sa sabar,
Bahot jald laa dungi tere yaar ki khabar,
Suiyaan bhaagi, badle din mahine saal...
Aaj tak wo nahi aaya nazar..

Saturday, November 21, 2015

3. अहंकार.

संसार में हर क्षेत्र और हर कार्य में सफल होना तो शायद ही संभव है। परंतु कई बार ऐसा होता है की मैं कोई एक क्षेत्र में पूर्ण रूप से सफल होने की कोशिश में लगा रहता हूँ और कुछ हद तक नाम कमा लेता हूँ।

उसी क्षेत्र में मुझसे ज्यादा सफल कई लोग हो अथवा मुझसे तेज़ होने की वजह से आगे निकल रहे हो यह संभव है। अक्सर लोग पूछते है की आप तो इस क्षेत्र में माहिर है फिर आपको शिखर सर करने की इच्छा नहीं होती?

मैं जवाब देता हूँ की करने को तो मैं बहोत कुछ कर सकता हूँ / सकता था परंतु मैं अपने लोभ को बढ़ाना नहीं चाहता और शिखर पर पहुचना कौनसी बड़ी बात है पर मुझमें ऐसा कोई अहंकार नहीं।

सच बात तो यह है की मुझमें लोभ और अहंकार कूट कूट कर भरा पड़ा है लेकिन मेरे निजी कारणो से यदि मैं सफलता की ऊंचाइयों पर नहीं पहुचता तो मैं लोभ और अहंकार की न्यूनता का दिखावा करता हूँ और वाकई में साबित करता हूँ की मैं सब से बड़ा अहंकारी हूँ जब मैं यह कहता हूँ की "करने को तो मैं कर सकता हूँ"।

Saturday, November 7, 2015

2. two-forty-five.

I woke up in the night at two-forty-five,
Phir Subah tak mujhe neend nahi aayi...

Aadhe adhure sapne saamne aa gaye ab,
Aur sawaal aaya, ye poore hoge kab?
Sapne aur Sawaal me aadhi umar bitaayi,
Teen baje Josh aaya, Kuch karna hai mere bhai...

I woke up in the night at two-forty-five,
I woke up in the night at two-forty-five...

Khyaalo ka chakkar ghumne laga jab,
Tab socha is gaane me, karlu ikattha sab.
Likhtey likhtey ban gaya shayar, dhun gungunaayi,
Sapne poore saare, hote diye dikhaayi...
I woke up in the night at two-forty-five,
I woke up in the night at two-forty-five...

I woke up in the night at two-forty-five,
Phir Subah tak, Ye Mehfil jamaayi...

Friday, November 6, 2015

1. Praise.

जब मेरी तारीफ़ होती है तब अच्छा महसूस होता है। जाहिर है, जैसा मैं महसूस करता हूँ वैसा सभी महसूस करते होंगे जब उनकी तारीफ़ होती हो।

मैं अक्सर यह चाहता हूँ की मेरी तारीफ़ हो परंतु मैं खुद कितनो की तारीफ़ करता हूँ? और करता भी हूँ तो अधिक मात्रा में क्या मैं उन लोगो की तारीफ़ करता हूँ जो मेरे सब से करीब है या उनकी जिन्हें मैं जानता हूँ परंतु वे मुझे नहीं पहचानते, जैसे की मेरे प्रिय कलाकार, खिलाडी, इत्यादि। मैं ऐसा नहीं कह रहा की उनकी तारीफ़ नहीं करनी चाहिए।

बहरहाल, अपने करीबी घरवाले, दोस्त, रिश्तेदारों की तारीफ़ करने में 3 कारण रुकावट बन सकते है।

1. जो उसने किया वह तो और कोई होता या मैं उसकी जगह होता तो भी वही करता, तो फिर इतनी तारीफ़ क्यों करू?

2. जब उसकी मैंने सहायता की थी, तब उसने कहाँ मेरी इतनी तारीफ़ की थी? तो अब मुझे भी मर्यादा में रहकर ही तारीफ़ करनी चाहिए।

3. अरे। मैं तो भूल ही गया तारीफ़ करना। खैर कोई बात नहीं, अगली बार याद रखूँगा।

अरे भाई, अगर मैं कलाकार का बार बार उसी प्रकार का प्रदर्शन देखकर जोर शोर से तारीफ़ कर सकता हूँ तो मेरे अपनों की और जिस व्यवस्था के बीछ मैं निराकुल रह रहा हूँ उसकी क्यों नहीं जो बार बार लगातार यह ख्याल रखते है की मेरी ज़िन्दगी में किसी भी प्रकार की रुकावट न आये और मैं आनंद से रह सकु।

ऐसे अनगिनत उदहारण मैं सोच सकता हूँ। शुरू करता हूँ मेरे घरवालों से जो रोज़ मेरे लिए बढ़िया भोजन बनाते है। 10 भोजन में से 1 भोजन में ज़रा सा नमक कम पड़ जाने में मैं टोकना नहीं चुकता तो 9 बार जब स्वादिष्ट भोजन बना तो मैं उनकी तारीफ़ करने से क्यों मुकर जाऊ?

इस तरह दोस्त, रिश्तेदार, कर्मचारी, मेरी सेवा में सदा तत्पर और मेरी हर मांग पूरी करने वाले (दूध वाले से लेकर सफाई वाले तक), सामाजिक व्यवस्था और शहर, राज्य, देश चलाने वालो की भी मैं अब से तारीफ़ करता हूँ और करूँगा।

Saturday, October 31, 2015

9. Handsfree.

कल जब मैं बाग़ीचे में टहल रहा था तो देखा की एक लड़का मोबाइल फ़ोन पर हॅंड्सफ्री के माध्यम से बात कर रहा था। उसने एक हाथ में मोबाइल पकड़ा हुआ था और दूसरे में हॅंड्सफ्री का स्पीकर जो की उसके होठों के करीब था।

मेरे मन में एक प्रश्न उठा। यह जो हॅंड्सफ्री है वह तो हांथो को मुक्त करने के लिए बनाई गयी है परंतु यहाँ तो कुछ विपरीत नज़र आ रहा है।

इसके साथ तुरंत एक विचार आया। मैं दुःख से फ्री होने के लिए पैसे, मान, अधिकार इत्यादि वस्तुओं के पीछे यह मान कर भागते रहता हूँ की यह सब मेरे दुःख फ्री होने का कारण है। परंतु वास्तव में क्या इससे विपरीत अनुभव नहीं हो रहा?

जीवन गुज़ारने के लिए कुछ चीज़ें आवश्यक है परंतु सुख तो मन की स्थिति है जो भीतर है और वहीँ से आती है। दुःख फ्री होने के चक्कर में मैं कहीं दुःख तो नहीं बढ़ा रहा यह विशलेषण मुझे खुद ही करना है।

यह विवेक करना है की कहीं हॅंड्सफ्री के उपयोग में मैं दोनों हाथों को बांध तो नहीं रहा।

8. Niyam.

एक इंसान रेस्टॉरेंट में गया और उसने कुछ खाना मंगवाया। उसका नियम था कुछ चीज़ों को न खाने का इसीलिए उसने अपने नियम के मुताबिक़ खाना लाने को कहा।

जब खाना आया और उसने 2-3 निवाले खाये तो उसे यह महसूस हुआ की उस खाने में ऐसी चीज़ें है की जिससे उसके नियम का उल्लंघन हो रहा है।

उसने यह सोचा की शायद खाना बनानेवाले से या आर्डर देने वाले से गलती हो गयी है। बड़ी नम्रता से उसने वेटर को बुलाया और जो हुआ वह बताया।

वेटर डर गया और सोचने लगा की अब क्या होगा। वह इंसान ने प्यार से कहा की कोई बात नहीं, बदल कर लेकर आओ।

ये वाकिया मेनेजर देख रहा था और उससे रहा नहीं गया। जब वह आदमी वहाँ से उठा तो उसने कहा की ताज्जुब हुआ ये देखकर की दूसरे की गलती से आप का नियम टूटने के बावजूद आप कितने शांत थे। इसकी वजह क्या है?

बड़ी सरलता से उसने कहा की - एक नियम तो टुटा, अब दूसरा क्यों तोड़ू?

मेनेजर बोला - मैं कुछ समझा नहीं।

वो इंसान बोला - हर इंसान का सदा के लिए कुदरत का दिया एक नियम है की उसे हर व्यक्ति के साथ प्रेम आदर और अपनेपन के साथ व्यवहार करना चाहिए। यह नियम तोडना मैं उचित नहीं समझता। और फिर जो गलती मेरे नियम में हो गयी - चाहे मुझसे या किसी और से - उसकी माफ़ी की गुंजाइश है, परंतु इस तरह कठोर बनकर वर्तन करने वाली गलती की माफ़ी आसानी से नहीं मिल सकती।

सब के चेहरे पर मुस्कान आई और दिल को सुकून मिला।