Saturday, October 31, 2015

9. Handsfree.

कल जब मैं बाग़ीचे में टहल रहा था तो देखा की एक लड़का मोबाइल फ़ोन पर हॅंड्सफ्री के माध्यम से बात कर रहा था। उसने एक हाथ में मोबाइल पकड़ा हुआ था और दूसरे में हॅंड्सफ्री का स्पीकर जो की उसके होठों के करीब था।

मेरे मन में एक प्रश्न उठा। यह जो हॅंड्सफ्री है वह तो हांथो को मुक्त करने के लिए बनाई गयी है परंतु यहाँ तो कुछ विपरीत नज़र आ रहा है।

इसके साथ तुरंत एक विचार आया। मैं दुःख से फ्री होने के लिए पैसे, मान, अधिकार इत्यादि वस्तुओं के पीछे यह मान कर भागते रहता हूँ की यह सब मेरे दुःख फ्री होने का कारण है। परंतु वास्तव में क्या इससे विपरीत अनुभव नहीं हो रहा?

जीवन गुज़ारने के लिए कुछ चीज़ें आवश्यक है परंतु सुख तो मन की स्थिति है जो भीतर है और वहीँ से आती है। दुःख फ्री होने के चक्कर में मैं कहीं दुःख तो नहीं बढ़ा रहा यह विशलेषण मुझे खुद ही करना है।

यह विवेक करना है की कहीं हॅंड्सफ्री के उपयोग में मैं दोनों हाथों को बांध तो नहीं रहा।

8. Niyam.

एक इंसान रेस्टॉरेंट में गया और उसने कुछ खाना मंगवाया। उसका नियम था कुछ चीज़ों को न खाने का इसीलिए उसने अपने नियम के मुताबिक़ खाना लाने को कहा।

जब खाना आया और उसने 2-3 निवाले खाये तो उसे यह महसूस हुआ की उस खाने में ऐसी चीज़ें है की जिससे उसके नियम का उल्लंघन हो रहा है।

उसने यह सोचा की शायद खाना बनानेवाले से या आर्डर देने वाले से गलती हो गयी है। बड़ी नम्रता से उसने वेटर को बुलाया और जो हुआ वह बताया।

वेटर डर गया और सोचने लगा की अब क्या होगा। वह इंसान ने प्यार से कहा की कोई बात नहीं, बदल कर लेकर आओ।

ये वाकिया मेनेजर देख रहा था और उससे रहा नहीं गया। जब वह आदमी वहाँ से उठा तो उसने कहा की ताज्जुब हुआ ये देखकर की दूसरे की गलती से आप का नियम टूटने के बावजूद आप कितने शांत थे। इसकी वजह क्या है?

बड़ी सरलता से उसने कहा की - एक नियम तो टुटा, अब दूसरा क्यों तोड़ू?

मेनेजर बोला - मैं कुछ समझा नहीं।

वो इंसान बोला - हर इंसान का सदा के लिए कुदरत का दिया एक नियम है की उसे हर व्यक्ति के साथ प्रेम आदर और अपनेपन के साथ व्यवहार करना चाहिए। यह नियम तोडना मैं उचित नहीं समझता। और फिर जो गलती मेरे नियम में हो गयी - चाहे मुझसे या किसी और से - उसकी माफ़ी की गुंजाइश है, परंतु इस तरह कठोर बनकर वर्तन करने वाली गलती की माफ़ी आसानी से नहीं मिल सकती।

सब के चेहरे पर मुस्कान आई और दिल को सुकून मिला।

Wednesday, October 28, 2015

7. Prayer.

What do I do when I Pray?

Usually, I seek a lot of things including blessings, well-being of self and family, a request to fulfil my desire(s).

Net-net, I speak up my heart and brain through voice or whispers and keep talking to Almighty for a period of time. Once I am done, I leave the place.

Have I ever attempted to do something different and that is instead of speaking, have I ever thought of listening to what Almighty has to say?

Today I went in front of Almighty and just strived to listen to him. To my surprise, I heard something and it was –

“Dude, why do you always come to Pray? Before you reply, let me tell you that I have fulfilled all your prayers when I gave birth to you. I have innovated a perfect masterpiece which is capable of exploring and exploiting the infinite potential that is already built in it. All you need to do is go ahead and discover it. There is no need to keep seeking. Nothing will be coming from outside. The solution lies within you. Observe and Recognize it. Thank you for listening.”

6. Opportunity.

When I want to attempt a new thing, the mind tends to ask a few blocking questions –

  • 1       Am I really made to do this?
  • 2       How can I do this when the whole world know that I am not this kind of person
  • 3       Will I be able to do this?
  • 4       Well, what difference will it make if I don’t do this?

These questions come out of a blend of ego, fear and image that is not me but a set of wrappers evolved over a period of time. As a result, I tend to limit myself to explore things. I limit the abundance of choices that are offered to me.

If I surpass this stage, the mind might counter attack and on a philosophical note it quotes – When you came to the life, you were empty and when you will quit this world, you will be empty again then why to get into intricacies of doing this and that. Just live as-is and have fun. What’s the harm?

Factually the mind quote about empty is true. However, what happens between the birth and death is LIFE which is nothing but an opportunity. Winners and Losers both survive after the sport is over but winners survive with a sense of achievement, a feeling of accomplishment.

I need to make a choice if between the two empty phases, I want to turn the Opportunity into empty or strive to explore the plenty.

5. Positive.

मेरा एक दोस्त नेगेटिव सोच का शिकार था। मैं उसे कहता की पॉज़िटिव सोचा कर।

एक दिन उसने मुझे कहा की क्या होगा पॉज़िटिव सोच कर। कुछ भी नहीं होता। सब वैसे का वैसे ही रहता है।

मैंने उसे कहा। दोस्त, एक बात बता। नेगेटिव सोच के क्या होता है? क्या फिर भी सब वैसे का वैसे नहीं रहता? क्या मन में उस दुःख का स्वरुप छोटा हो जाता है या और भी बड़ा हो जाता है?

मन को नेगेटिव सोच की इतनी आदत हो गयी है की जब कोई कहता है की पॉज़िटिव सोचो, तो मन उसको तुरंत अस्वीकार कर देता है। परंतु ये विचार नहीं करता की जैसा वह नेगेटिव सोचता है ठीक उसी तरह वह पॉज़िटिव भी सोच सकता है।

शायद हालात सुधरे नहीं परंतु मन के अंदर ज्यादा बिगड़ेंगे तो नहीं।

Friday, October 23, 2015

4. Graduate.

मैं जब स्कूल में था तब एक साल की पढाई के बाद अगली कक्षा में जाता था। जाहिर है के इसके लिए इम्तिहान में उत्तीर्ण होना ज़रूरी था। जब अगली कक्षा में जाता था तब पिछली कक्षा से अधिक पढ़ाई होती थी, ज्यादा मेहनत करनी होती थी।

इस तरह आगे बढ़ते एक साल ऐसा आया जो पढाई का आखरी साल था। उस साल भी इम्तिहान लिए गए। फर्क ये था की उस साल उत्तीर्ण होने के बाद मुझे डिग्री दी गयी।

ठीक इसी तरह मैं अध्यात्म क्षेत्र में काफी साल से जुड़ा हुआ हूँ। बाहर में ये भी कहता हूँ की पुरुषार्थ कर रहा हूँ। सवाल यह है की क्या हर साल मैं उत्तीर्ण होता हूँ? क्या हर साल के बाद  जो नया साल आता है उसमें मेरी साधना आगे बढ़ती है?

क्या मुझे पता है की मेरी पढाई का आखरी साल कब है? क्या मैं यह जानता हूँ की मुझे डिग्री कब मिलने वाली है? क्या मैं यह कह सकता हूँ की कितने वर्षों के बाद मैं अध्यात्म जगत की अंतिम परीक्षा में उत्तीर्ण होकर ग्रेजुएट बन जाऊंगा?

Wednesday, October 21, 2015

3. Farsightedness.

मैं अपने आप को दीर्घद्रष्टा मानता हूँ। इसीलिए मैं हमेशा प्लानिंग के साथ काम करता हूँ।

परंतु मेरी प्लानिंग कब तक की है? केवल इस भव तक सीमित है या अगले भवो का भी कोई विचार है?

अगर मैं कहूँ की आने वाले भवो का भी मैंने विचार किया है तो उनकी प्लानिंग के पीछे मैं इस भव की तुलना मैं कितना समय निकालता हूँ?

यह भव तो अगले 40-45 वर्ष तक मर्यादित है और मान के चले की आने वाले 15 भवो में मोक्ष प्राप्त करने की क्षमता है मेरी तो जितना वक़्त मैं इस भव की प्लानिंग में बिताता हूँ उससे 15 गुना ज्यादा वक़्त तो मोक्ष की प्लानिंग के लिए नहीं निकाला तो अनंत भवका परिभ्रमण लगभग निश्चित है।

अब मुझे यह तय करना है की सच में मैं दीर्घद्रष्टा हूँ या नहीं?

2. Saadhan.

साधन का उपयोग साध्य के लिए होना ज़रूरी है।

वह साधन जिसका उपयोग साध्य के लिए नहीं होता उसकी क्षमता को चूक जाता है।

क्रिकेट का बल्ला अगर कपडे धोने के लिए इस्तेमाल किया जाए तो उससे कपडे तो धूल जायेगे परंतु यह सवाल रहेगा की क्या वह बल्ले की क्षमता का सही इस्तेमाल हुआ है?

ठीक उसी तरह अगर सत्संग भक्ति व्रत नियम इत्यादि साधनो का लक्ष्य परमार्थ न होकर केवल दिखावा या महज एक यांत्रिक क्रिया बन जाए तो वह साधन की क्षमता गौण हो जाती है।

इसमें खामी साधन में नहीं बल्कि उसका उपयोग करने वाले में है।

Saturday, October 10, 2015

1. Kamaya.

Saari zindagi bahot paisa kamaaya,
Phir bhi kyu khushi ka balance kam aaya?
Auron se aage, sab se tez khud ko bhagaya,
Kyu aisa laga ki auron ko mili khushi, mere naseeb gam aaya?

Jeevan bhogne ki ichcha hui,
Tab Paisa kamaane ka mauka hardam aaya,
Agli baar bhog lunga, is baar kamaa lu,
Is tarah se Maine mann ko samjhaaya!

Yehi chakkar chalta raha aur ek din,
Jab dastak deta dwaar pe yam aaya,
Kuch kahu uske pehle sab bikhar gaya,
Wo sab jo zindagi bhar jamaaya (jamaa kiya)!

Saari zindagi bahot paisa kamaaya,
Par jeete jee kitna bhoga aur marne k baad kitna kaam aaya??